संघर्ष चक्र

नमस्कार दोस्तों
मेरी आज की कविता का सम्पादन जीवन  में संघर्ष चक्र से सम्बंधित  है। आशा करती हूँ की आप इस कविता को  ध्यान  से पढ़ेंगे और इस जीवन चक्र में स्वाभविक कठिनायों का हल मिलेगा। इस कविता को अपने बड़े और छोटे सगे सम्बन्धियो से शेयर करें । इस जीवन के संघर्ष चक्र में  बताया गया है कि प्रयास निरतंर करते रहना चाहिए। जिससे  हमारे जीवन की समस्याओं का हल समयनुसार  निकलता जाता है ।


इंतज़ार बहुत नज़दीक का है ,
मगर उसकी दूरी  लम्बी लगती है ।

चाल से ज्यादा कामनाएं बढ़ जाती है ,
मगर सफ़र में रूचि होने लगती है ।
धीरे धीरे कामनाओं से ज्यादा हमारा दायरा बढ़ जाता है ,
उस दायरे  में रहें या बढ़े इसमें हमे असमंजस का होने लगती है ।
दायरे की तरफ़ बढ़े तो उलझनें  फसा लेती हैं,
और दायरे में रहें तो हमारी सोच भी सीमित होने लगती है ।

उलझनों से सुलझने के लिए फिर दायरा को आगे बढ़ाना पड़ता है ,
सोच को सीमा से निकलकर  असीमित होने लगती है ।
जब सोचते वक़्त सीमा पार कर सकते हो ,
तो जरूर प्रयास की सीमा भी बढ़ने लगती है ।

जब प्रयास की सीमा बढ़ने लगती है ,
असीमित कामनाएं सीमित होने लगती हैं।
कामनाओं की सीमा देखते सफलता का इंतजार नज़दीक लगने लगता है ,
और जो दुरी लम्बी लगती है वो छोटी हो जाती है ।

शुक्रिया दोस्तों।

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