मैं ढूँढता कहाँ हूँ.....
नमस्कार दोस्तों ,
मेरी अगली कविता का शीर्षक है, "मैं ढूंढता कहाँ हूँ " । आशा करती हूँ हमेशा की तरह यह कविता भी आपको पसंद आएगी और आप मेरी इस पोस्ट पर कमेंट और शेयर करना न भूलें।
मैं तुम्हें कहाँ ढूँढूँ?
हीरा समझ कर ,
कोयले की खान में ढूंढता हूँ।
थकता बहुत हूँ,
मगर हार नही मानता हूँ।
मैं तुम्हें कहाँ ढूँढूँ ?
चाँद समझ कर ,
आसमाँ के सितारों में टिमटिमाता हूँ।
देखता बहुत हूँ,
मगर नज़र नही आता हूँ।
महज़बीन समझ कर
आईना के सामने मुस्कुराता हूँ।
खुश बहुत हूँ,
मगर फिर भी तुम्हें अपने से दूर पाता हूँ।
प्रिय !अब मैंने तुम्हें ढूँढ लिया है...
पूछो कहाँ?
.
.
.
अदृश्य समझ कर ,
तेरी तस्वीर बनाता हूँ।
बाहर से ढूँढता बहुत हूँ,
मगर अपने ही दिल के अंदर पाता हूँ।
इस कविता को पढ़ने के लिए शुक्रिया ।भविय की पोस्ट ल् लिये इस ब्लॉग को फॉलो जरूर करें।
बहुत खुबशुरत लेखनी दिल को छूने वाली पंक्तियां प्रयास अत्यंत सराहनीय हमारी सुभकामनाये आपके साथ है आप और अच्छी कविताये लिखे
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया।
हटाएं👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएं👍👍👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंBeautiful lines.. always heart touching 😍
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएं🙌🙌🙌🙌gajab lines
जवाब देंहटाएंBahut khob👏👏
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंBahut khob👏👏
जवाब देंहटाएंshukriya
हटाएंSuperb����
जवाब देंहटाएंthank you so much
हटाएं👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएं👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंOh my god superb bhut achi lines hai 👍👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंOh my god superb bhut achi lines hai 👍👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
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