खुशमिजाज़

नमस्कार दोस्तों , लम्बे समय के बाद ब्लॉग पर अपनी अगली कविता प्रस्तुत की है । कोरोना के इस संकट काल में हर व्यक्ति ने कोई न कोई करीबी खोया है , मगर ज़िन्दगी फिर भी थम नही सकती है । वक्त चल रहा  है  यह गतिशील है यह अपनी रफ़्तार से रुकता नही है किन्तु इंसान की ज़िन्दगी की रफ़्तार कभी बदलती रहती है कभी यही धीमी हो जाती है तो कभी तेज चलती है और ज़िन्दगी एक समतल  मैदान पर आ दौड़ती है । हमें आस पास आगे पीछे हर जगह सीखने को मिलता रहता है और इस निरन्तर चाल से ही हमारी ज़िंदगी की गति होती है । 
महामारी के इस दौर में हर व्यक्ति परेशानी झेल रहा है , कुछ व्यवसाय से , तो कुछ आय से  और कुछ नही तो फालतू वाली राय से चिंतित है । आज की कविता की पंक्तियो हर घड़ी में स्थिर कैसे रहना है ,इसका प्रयास  किया गया है कि जब  सब कुछ असंभावित लगता है तब उस वक्त भी एक सम्भावना जरूर होती है ।  अतः ज़िन्दगी में हर वक्त खुश ही रहना चाहिए, आशा करती हूँ कि आपको मेरी यह  कविता "खुशमिजाज़" ज़रूर पसन्द आएगी , और आप जीवन 😁😁😁 में खुुश रहेंगें।

मैं बहुत खुशमिजाज़ हूँ,
थोड़ा खुश कल थे,
 कुछ आज भी हूँ।

जैसे...
ग़मो 😢😢😢 के बीच 
ख़ुशी😁😁😁 का हमराज़ हूँ।



जैसे...
तपती धूप में पेड़ो🌳🌳 के बीच
छाँव का राज़ हूँ।


जैसे ...
 बारिश की बूंदों के बीच 
चमकती बिजली की गाज हूँ।
जैसे...
अन्धकार के बीच 
दीये की लौ का आगाज़ हूँ।


जैसे ...
आसमाँ के बीच चलते
बादलों का अंदाज़ हूँ।

जैसे...
रात्रि तारों के बीच 
चाँद सा ताज़ हूँ।

जैसे...
स्वादिष्ट सब्जी के बीच 
प्याज़ का स्वाद हूँ।

जैसे ...
 निरन्तर चलते वक्त के बीच ,🕘🕠🕒🕛
ज़िन्दगी से उम्रदराज़ हूँ।

इसलिए,,
बाहर यहाँ वहाँ  घूमने के बाद भी
अपने भीतर पहुँच कर खुशमिजाज़ हूँ। 

इस कविता को पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दोस्तों , 🙏🙏🙏कृपया करके ब्लॉग पोस्ट  पर कमेंट करके जरूर बताएं प्रयास कैसा लगा और शेयर,  subscibe जरूर करें । आपका समय शुभ रहे ।💐💐

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