तपते पहाड़ों में सियासी गर्मी

तपते पहाड़ों में सियासी गर्मी 

नमस्कार दोस्तों, 

हम आज के इस लेख के माध्य से क्षेत्रीय चुनाव के हालात  का जायजा लेंगें ।  

जहाँ  देश भर में  लोकसभा के चुनाव चर्चित हैं  वही इस बार  हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी रोचक हैं।

जहाँ  हम अगर प्रादेशिक दृष्टिकोण को देखें तो हिमाचल यानी  हिम  का आँचल  ,,, हिमालय की गोद में बसा हुआ धरा का भाग  जो पेड़ो  से हरा- भरा है  बर्फ से ढकी चोटियाँ हैं  और कल कल पानी करते झरने- कतार  मे बहते शुद्ध पानी की नदियाँ हैं ।
आबादी  के हिसाब से देखें  तो लगभग 78 लाख जनसँख्या के साथ यह देश के सबसे छोटे राज्यों  में  से एक है । यहाँ  विधानसभा की 68 सीटें हैं  4 लोकसभा की सीटें  और साथ ही 3 सीटें  राज्यसभा  के लिए अंकित हैं । 

प्रदेश का राजनीति इतिहास 


प्रदेश का राजनीतिक इतिहास के ऊपर हम नजर डालें  तो प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री  और राज्य निर्माता डॉक्टर यशवंत सिंह परमार थे।जबकि  वर्तमान मुख्यमंत्री  सुखविंदर सिंह (सुखू)  हमीरपुर जिले के नदौन  क्षेत्र से सम्बन्धित  हैं । इसके अलावा कांग्रेस की तरफ़ से  ठाकुर रामलाल सिंह, राजा वीरभद्र सिंह, और भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की तरफ़ से शान्ता कुमार, प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर को मुख्यमन्त्री  बनकर  प्रदेश का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ।  प्रदेश में  स्थैतिक और मजबूत नेतृत्व का दावेदार स्वर्गीय राजा वीरभद्र जी माना जाता है उनके इसी खूबी के लिए प्रदेश में  6 बार मुख्यमंत्री बने, और प्रदेश में  विकास कार्यों  का मसीहा प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल जी को माना जाता है ।प्रदेश में  आजतक 2 ही पार्टी  चुनाव  लड़ने में  सक्षम रही हैं, हर पांच  वर्ष बाद  पक्ष विपक्ष की अदला-बदली चली रहती है जिसके  चलते दोनों  पार्टी  के नेता बेहतरीन कार्य के लिए अग्रसर रहते हैं । साल 2022 नवंबर  में  विधानसभा के चुनाव हुए थे और दिसंबर में  चुनावों  के नतीजे आए थे । उस समय दोनों  पार्टी सरकार बनाने का दावा  कर रही थी। नतीजे कांग्रेस  की तरफ़ घोषित होने से कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यकारणी में पुनर्जीवित होने की भाव हुए थे।

मुख्यमंत्री पद का घमासान 

चुनाव से पहले भाजपा की तरफ़  से जयराम का नाम मुख्यमंत्री  के लिए घोषित था। केंद्र मे भाजपा की सरकार होना और अन्य  राज्यों में  केंद्रीय प्रचार के चलते बनती सरकारों को देख कर भाजपा अपनी डबल इंजन की सरकार अनुमान  से बना चुकी थी। मगर हकीकत में  टिकट का गलत आबंटन करना दूसरे खेमे को समाप्त करने के चक्कर में भाजपा सरकार बनाने से ही चूक गई।  वहीं दूसरी ओर राजा साहब की मृत्यु के बाद  प्रदेश मे कांग्रेस  की सियासी  राहे  उतनी आसान  नहीं  थी। सरकार बनाना और मुख्यमंत्री का चेहरा देना कांग्रेस के लिए उफनते दुध की तरह सम्भालना था । एक तरफ़ पार्टी के दिगज्ज नेता थे और दूसरी तरफ़ राजपरिवार तो तीसरी ऐसा प्रत्याशी जो जुनून और अनुभव से भरा हो केंद्र की सरकार के आगे चट्टान सा टिका रहे।

मुख्यमंत्री पद की शपथ

कांग्रेस के सत्ता  में आते ही , जब तक अन्य  दावेदार अपने 35 विधायक पूरे करते इतने में  सुखविंदर  सिंह सुखू जी दिल्ली में  जाकर अपने विधायकों  के साथ मुख्यमंत्री  पद का दावा करके शपथ ग्रहण  कर लेते  हैं। अनुमानित  था  वर्ष2017 की तरह मुख्यमंत्री  के कुछ ना कुछ  अटकलें जरुर रहेंगे हालांकि  रानी साहिबा के समर्थकों ने  चाहत जरुर जताई थी मगर सुखू जी की  शिमला  जिले के विशेष कांग्रेस  नेताओं के साथ अच्छी बनती थी तो मुद्दा तूल  न पकड़  सका  और इस तरह सुखू जी ,,, मुख्यमंत्री  सुखविंदर सिंह सुखू बन गए । यह वह  मौका था जब मुख्यमंत्री  बिना मंत्रीमंडल घोषित किये अकेले शपथ ले रहे थे।
उसके बाद खेल  शुरू  हुआ मंत्रीमंडल  के गठन के लिए तो इसमे अलग अलग अटकलें  लगायी जा रही थी जरूरतों  के अनुसार प्रदेश मे हालात  देखते हुए उन नेताओं  को पार्टी के लिए समर्पित थे उनको मन्त्री बना दिया गया। बचे कुछ  सियासत के धुर्न्धर  जिनमें  एक राजिंदर राणा जिसने  पूर्व मुख्यमन्त्री  धूमल जी को हराया था।

सियासी  बगावत 

सियासत पलटने के लिये विपक्ष तरह 'तरह-तरह' की अटकलें  लगा रहा था। केन्द्र  के मन्त्री भी इंतजार  मे थे उसका बड़ा कारण यह था की वोटर की जागरूकता के आगे बड़े  नेताओं  की भी एक नही चली । लोगों  की माँग  "OPS" मतलब ओल्ड पेंशन स्कीम चुनाव  एक बड़ा मुद्दा रहा । सरकार को बने हुए अभी 6 माह ही हुए थे की सदी की सबसे बड़ी  आपदा ने  मानो सियासी  राह मे विकट परिस्थिति  पैदा कर दी । मगर मुख्यमंत्री सुखू जी ने हार नही मानी  और फिर से चट्टान की तरह खड़े  होकर  मैदान मे टिके रहे साथ मे उप- मुख्यमन्त्री  हनुमान की तरह साथ निभाने में जुटे रहे  प्रदेश के 12 जिलों  मे सरकार बनने के 6 माह के भीतर  ही दौरे करने वाले  वकयदा अग्रिम नेता बन गए होने, उनके इस कार्य की निति को पूर्व भाजपा के मुख्यमंत्री  शान्ता कुमार और संस्थाओ द्वारा भी सहारा गया।
आपदा खत्म होने के बाद मंत्रीमंडल  का विस्तार हुआ जिसमें अन्य  सियासी लोभ की जगह कर्मठ नेता को मन्त्री बनाया गया। अब जो लोग कार्य की बजाय सियासत मे दिलचसपी रखते हैं उनका खेला  शुरू हो ग्या ।चूंकि कांग्रेस के पास 68 में से  40 सीट हैं तो सरकार  बनाने  के लिए 34 सीट का आंकड़ा जरूरी  है । इसके लिए कांग्रेस के 6 विधायक बागी होकर राज्यसभा के क्रॉस वोटिंग करके  भाजपा नेता हर्ष जी को राज्यसभा भेज दिया । राज्यसभा चुनाव के बाद  कांग्रेस पार्टी ने सख्ती से उन 6 विधायकों  का पार्टी से निष्कासन कर दिया  सदस्यता रद्द होंने से 6 विधायक पूर्व  विधायक बन गए । भाजपा ने कांग्रेस के विधायको से वफ़ादारी निभाते हुए आलाकमान ने 6 सीट पर भाजपा की तरफ़ से कांग्रेस  के 6 विधायक चुनाव क्षेत्र में उतार दिये। इससे भाजपा मे अन्दरूनी  कलह शुरू हो गई । भाजपा प्रदेशाध्यक्ष  राजीव बिन्दल के साथ जय राम ने दिन रात  एक कर दी मगर कोशिश सिरे न चढ़  सकी ।  नतीजा ये हुआ की भाजपा में अपने आप मे बगावत हो गई सुजानपुर की सीट पर पूर्व भाजपा प्रतियाशी की राशि में  मानो मुख्यमंत्री  का ही आशीर्वाद लिखा हो । तो वर्तमान मे उस सीट को हॉट सीट करार दिया ग्या है । मार्कण्डेय, कंवर और चौधरी ये सब पूर्व विधायक लोकसभा मे ही रुचि ले रहे हैं पार्टी के किए वफा करते हुए कांग्रेस मे  नही गए मगर भाजपा से संतुष्ट  भी नही है ।

बगावत का असर 

यूँ तो चुनाव नतीजों  से पहले बगावत का असर नही दिखा सकते हैं  मगर जो हाव भाव  लग  रहा है उसके अनुसार बगावत का असली असर दोनों  पार्टी के कार्यकर्ता  के ऊपर देखने को मिल रहा है । एक तरफ़ जहाँ  जो लोग 2014 से मोदी जी के खिलाफ़  बयाँनबाजी  कराते थे आज मोदी जी के नाम पर वोट माँग रहे हैं । दूसरी तरफ़ वो कार्यकर्ता जो डेढ़ साल पहले एक पार्टी के लिए वोट माँग रहे थे अब बगावत  करके  दूसरी पार्टी के लिए वोट माँग रहे हैं । इससे जो पार्टी के मूल कार्यकर्ता हैं  उन पर असर प्रभावी है । मगर अभी तक हालात  यह तय नही कर सकते हैं  की विधानसभा किस स्तिथि  को प्रकट करेगी । इसके लिए 4 जून का इंतजार बरकार है । 
प्रदेश के सभी मतदाता  इस पर्व मे हिस्सेदारी जरूर दे।

#nationfirstvotemust. 

नेता ऐसा चुनें  जो देश प्रदेश का विकास करें  उन्नति के कार्य करें गडकरी जी की तरह व्यक्तिगत लोभ को छोड़कर  देश के विकास को सर्वोच्च  मानें । बाकि हिमाचल की जनता को सबसे ज्यादा जागरुक माना  ग्या है ।  

आशा करती हूं यह पोस्ट आपको अच्छी लगी होगी । 
यह लेख व्यक्तिगत🤷‍♀️  विचार है ।

धन्यवाद ।

लेखिका🖋🖋
छाया डढवाल। 

नमस्ते

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