कच्चे -पक्के रिश्ते की डोर

कच्चे पत्थर और मिट्टी के घर टूटते गए,

ईंट- सीमेंट के मकान पर मंजिल बनते गए।

मिट्टी की दीवारों पर हस्तकला का लेप खो गया,
पक्की दीवारों को ब्रश ने तरह तरह का रंग डाल दिया।

कच्चे आँगन में फूलों की क्यारी लगाना, तुलसी उगाना  छोड़ गए,
पक्के आँगन के कोने में डस्टबिन को कूड़ा से भर दिया।

कच्चे आँगन में दाना डालकर चिड़िया को बुलाना भूल गए,
पक्के आँगन में चारदीवारी का गेट बंद कर गए।

मिट्टी के रास्ते पर पैरों का पता हुआ करता था,
पक्की सड़कों पर चलने से पैरों में छाले हो गए।

बस यूँ ही जमाना बदलता गया,
हम पुराने होकर मर मिट गए,
और नयी पीढ़ी से संसार चलता गया।

 मगर ये हकीकत  बन गई.... कि
कच्ची दुनिया में रिश्ते पक्के हुआ करते थे,
अब पक्की दुनिया के रिश्ते कच्चे हो गए।


टिप्पणियाँ

  1. Wahhh g kya baat hai.... Yh hui na baat... Good starting dear... Wish u all the best for ur bright future

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  2. Fascinating, mind blowing.... I loved it.... Awesome poem Chhaya... So beautifully you hv described the change in the world and feelings, emotions of it. 👌👌👌👌👌👌👌👌👌 You hv improved your writing, i am impressed with ur poem, keep it up... ❤️❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. Fabulous poem mam.Proud of you.Your every lines are heart touched.

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  4. Sahi h....👌sare gaon ab shehar ban rahe hain....aur bas apnapan kho rahe hain....

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