पर्यावरण का बदलता स्वरुप...
हरे -हरे पेड़ कटते गए,
भरे -भरे जंगल जलते गए,
चिड़ू-पंखेरु उड़ते गए,
टिड्डी -मकोड़े मरते गए।
कन्द-मूल ,फल- फूल सब सूख गए,
तितलियाँ ,भँवरे सब रूठ गए,
खेत-खलिहान सब बंजर हो गए,
दुधचर पशु आवारा हो गए।
सिंचाई वाले कुँए सूख गए,
पेयजल की वावड़ी में मिट्टी भर गई,
गाँव-शहरों में नलकूप(हैंडपम्प) लग गए,
जंगली जानवर प्यासे -प्यासे तड़प रहे।
हर रोज़ प्लास्टिक जलाते हैं,
हवा में थोड़ा ज़हर घोलते हैं,
प्रदूषण से फेफड़े खराब हो गए,
कृत्रिम साँसे सिलिंडर में खरीद रहे।
चिमनियों का धुंआ फैलता गया,
उद्योग धंधा बढ़ता गया,
रास्तों में कूड़ा -कचरा भर गया,
पैदल चलकर सड़क पर पैर छील गए।
इंसानियत कैसे बदल गई है ,
आराम की जिंदगी मिल गई,
अगर सूझे न कोई उपाय उलझन का
तो हैवानियत बढ़ गई।
पर्यावरण को मिलकर बचाएं,
एक एक पौधा सब लगाएं,
हवा को स्वच्छ जल को साफ़ रखो
प्रकृति के साधनों से इन्साफ रखो।
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Good.. creativity
जवाब देंहटाएंNyc one chhaya keep it up
जवाब देंहटाएंThank you so muvh
हटाएंAwesome chhaya Dadhawal ji
जवाब देंहटाएंWaooo it's incredible....No word to say
जवाब देंहटाएंThank you so much❤️
हटाएंAmazingly beautiful ❤️
जवाब देंहटाएंThank you so much💐
हटाएंSuperb poem👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much💐
हटाएं👌👌
जवाब देंहटाएंBahut hi achha ar sch likha hai aapne 👌🏻👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंSuperb 👌 👌 👌 👌 👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंBahut khub
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंBahut khob👌👌
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंअतिसुन्दर कबिता अच्छा प्रयास, प्रक्रति का प्रेम आपके इस कविता में दिख रहा है
जवाब देंहटाएं👍👍
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