मिल-बाँट कर खाने की रीति बनाएँ





  नमस्कार दोस्तों मेरी आज की कविता एक चिड़िया की व्यवहारिक  जीवन  पर केंद्रित है, आशा करती हूँ आप सबको पसन्द आएगी , कविता पढ़ने के साथ ब्लॉग को subscribe जरूर करें।


सुबह के वक़्त वो डाल पर बैठकर चहचहाती है,
मुझे सोई हुई को गहरी नींद से जगाती है।

मेरे पास जाने से वो अपने पंख फड़फड़ाती है,
फुर्ती से  खोलकर पंख वो डरती हुई उड़ जाती है।

थोड़ी देर में वापस उसी डाल पर चीं-चीं करके बुलाती है,
अंगूर की बेल पर अपनी तेज़ नज़र मुझ पर दौड़ती है।


पक्के अंगूर के गुच्छे देखकर मेरी जीभ से ललचाते हुए लार टपक जाती है,
अंगूर के पास जाकर ,कच्चे अंगूर खाने से मेरी आँख मिचमिचाती है।

 मेरे बेल के भीतर जाने से , चिड़िया छत पर लौट जाती है,
किन्तु जाते -जाते  पक्के अंगूरों को जूठा कर जाती है।

 मैं भी बेल से जूठे अंगूर  तोड़कर फेंक आती हूँ,

चिड़िया तो फिर अगले दिन पक्के हुए अंगूर चख जाती है।
कुछ पल  मेरी और चिड़िया की पकड़न पकड़ते चलती है,
छोटी सी चिड़िया हमसे न पकड़ी जाती है।

फिर इसी प्रतियोगिता के चलते एक बात समझ में आती है,
अन्न- जल सब  खाद्यान पर मनुष्य के साथ जीव-जंतु का भी हिस्सा  होता है।

फिर कुछ फल मैं खा लेती हूँ, कुछ चिड़िया को खाने देती हूँ,
मिल बाँट कर खाने का सीख मैं लेती हूँ ,इस कविता के माध्यम से यही सीख आपको देती हूँ।

 शुक्रिया दोस्तों इस कविता पर कमेंट करना न भूले ,और जल्दी ही अगली कविता आने का इंतज़ार करें। 

जय हिंद ।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही मासूम सा कविता है ये और यही मासूमियत इस कविता को खूबसूरत बनाती है। बहुत अच्छा है।👍👍👍💐💐💐❤️❤️❤️❤️🙏🙏

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