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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुकून के पल

कड़कती धूप में तपते हुए, मुसाफ़िर को, पेड़ की छाँव में टहल जाने से सुकून मिलता है। चार बूंदे बारिश की ज़मीन पर, बरस जाने से, प्यास से तड़पती हुई जमीं  को सुकून मिलता है। पत्थरों के रास्ते बहती हुई ,नदी की जलधारा को, समुद्र की गहराई में थम जाने पर  सुकून मिलता है। रूठे हुए ईश्क़ के बन्दे को,मोह माया का जाल छोड़कर , अकेले में बैठ कर खुद से मिल जाने में  सुकून मिलता है। जिम्मेदारियो के बोझ से दबे हुए वयस्क को,बूढ़ी माँ के आँचल में आँखे बंद करके सो जाने से सुकून का पल मिलता है।  कृप्या करके इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर,  लाइक , और फॉलो करें । धन्यवाद।

पर्यावरण का बदलता स्वरुप...

  हरे -हरे पेड़ कटते गए,  भरे -भरे जंगल जलते गए,  चिड़ू-पंखेरु उड़ते गए,  टिड्डी -मकोड़े मरते गए।  कन्द-मूल ,फल- फूल सब सूख गए,  तितलियाँ ,भँवरे सब रूठ गए,  खेत-खलिहान सब बंजर हो गए,  दुधचर पशु आवारा हो गए।   सिंचाई वाले कुँए सूख गए,   पेयजल की वावड़ी में मिट्टी भर गई,  गाँव-शहरों में नलकूप(हैंडपम्प) लग गए,  जंगली जानवर प्यासे -प्यासे तड़प रहे।   हर रोज़ प्लास्टिक जलाते  हैं,   हवा में थोड़ा ज़हर घोलते हैं,  प्रदूषण से फेफड़े खराब हो गए,  कृत्रिम साँसे सिलिंडर में खरीद रहे।   चिमनियों का धुंआ फैलता गया,  उद्योग धंधा बढ़ता गया,  रास्तों में कूड़ा -कचरा भर गया,  पैदल चलकर सड़क पर पैर छील गए।   इंसानियत कैसे बदल गई है ,  आराम की जिंदगी मिल गई,  अगर सूझे न कोई उपाय उलझन का   तो हैवानियत बढ़ गई।   पर्यावरण को मिलकर बचाएं,   एक एक पौधा सब लगाएं, हवा को स्वच्छ  जल को साफ़ रखो प्रकृति के साधनों से इन्साफ रखो। Plz like , comment, and share this poem.

अपना- सा रिश्ता

यारी-दोस्ती ,रिश्ते - नाते  सब बड़े ही प्यारे होते, यूँ तो हर किसी को  "अपना" कह नही पाते। अपनों से थोड़ा गिला -शिकवा तो चलता ही रहता है,लेकिन थोड़ी देर के बाद फिर एक-दूजे के बिना रहा नही जाता। आजकल कहने को तो  सब अपने हमदर्द कहलाते हैं, मगर किसी को भी बिना बताए हमारे जज़्बात समझ न आते । वो कभी हमसे ही  हमारी शिकायत लगाते हैं , तो कभी हमारे रूठ जाने पर  खुद हमे मनाते हैं। सामने मुँह पर तो  कोई भी "अपना" कह जाता है, मगर कष्ट की घड़ी में चेहरा छुपाकर , कोई नज़रें नही मिलाता। कौन अपना है? ,  कौन पराया है? इस इम्तिहान के परिणाम ने हर किसी को उलझाया है  । हमारा हाथ पकड़कर  जिसने हमसे वायदा किया, अपना मतलब  बीत जाने पर उसने भी हमसे दामन छुड़ाया। याद रखना एक तुजुर्बा निकलकर सामने आया है.....  इस दुनिया में "अपना"सिर्फ वही कहलाया है, जिसने मुश्किल वक़्त में हमारा  साथ निभाया । कभी किसी की अमीरी देख के रिश्ता न बनाना, और न ही "अपनों" को गरीबी देख के  ठुकराना। Like ,comment and share this post.

संस्कार भी जरूरी होते हैं...

 सारा जमाना हाथ में फोन लेकर बहरा हुए जा रहा है दिनभर सोशल मीडिया पर पोस्ट  लगा कर मुस्कुरा रहा है।  दूसरों को अनसुना कर , अपनी   बात ही सुनाए जाते हैं किसी ठीक बात को गलत और  गलत को ठीक ठहराते हैं। माँ-बाप  हमारे सामने सुबह से शाम तक काम करते हैं नौजवान कोई बहाना बनाकर लाचार हो जाते हैं। घर की इज्ज़त को लेकर , घरवाले छोटी कहासुनी को छुपाते हैं, बेइज्ज़त होकर फिर वही, घरवालो पर भी हाथ उठाते हैं। अपना समझकर जो अपने होते हैं ,वो तो नजरअंदाज  कर देते हैं  मगर फिर वो अपनों के दिलो में भी घाव कर देते हैं। पड़ोसी की हिंसा देख कर सब लोग मज़ाक उड़ाते हैं टीवी  वाले भी खबर को और रोचक बनाकर दिखाते हैं। गाँव में धक्का मुक्की ,मारपीट आम बात बन जाती है हिंसा देख-देख कर शहरों में तो, गोली तक चल जाती है। बेबस होकर न्याय का दरवाजा खटखटाते हैं पैसे का धंधा समझकर वकील केस की तारीख बढ़ाते हैं। किसी सरकारी मुज़रिम का सहारा  लेकर, केस से छुटकारा पाते हैं दोबारा फिर से वही गलती गुस्ताख़ी  दोहराते हैं। बार बार की ये बात एक दिन आदत बन जाती है और ये एक आदत पूरा मोह्हला  बिगाड़ जाती है। इस दुनिया में कौन अपना है, सोचकर

कच्चे -पक्के रिश्ते की डोर

कच्चे पत्थर और मिट्टी के घर टूटते गए, ईंट- सीमेंट के मकान पर मंजिल बनते गए। मिट्टी की दीवारों पर हस्तकला का लेप खो गया, पक्की दीवारों को ब्रश ने तरह तरह का रंग डाल दिया। कच्चे आँगन में फूलों की क्यारी लगाना, तुलसी उगाना  छोड़ गए, पक्के आँगन के कोने में डस्टबिन को कूड़ा से भर दिया। कच्चे आँगन में दाना डालकर चिड़िया को बुलाना भूल गए, पक्के आँगन में चारदीवारी का गेट बंद कर गए। मिट्टी के रास्ते पर पैरों का पता हुआ करता था, पक्की सड़कों पर चलने से पैरों में छाले हो गए। बस यूँ ही जमाना बदलता गया, हम पुराने होकर मर मिट गए, और नयी पीढ़ी से संसार चलता गया।  मगर ये हकीकत  बन गई.... कि कच्ची दुनिया में रिश्ते पक्के हुआ करते थे, अब पक्की दुनिया के रिश्ते कच्चे हो गए।