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मैं 'बेचैन' क्यूँ हूँ?

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मैं 'बेचैन' क्यूँ हूँ? हँसी-ख़ुशी, उदासी-ग़म हमारे जीवन का हिस्सा होते हैं ।  इंसान के जीवन में व्यवहारिक क्रियाओं के जरिए भीतर के भाव झलकते(प्रदर्शित होते)  है।ज्यादातर समय इंसान के मन में क्या चल रहा है ?  यह सामने वाले को उसकी हरकतों के माध्यम से अंदेशा हो जाता है । किन्तु इंसान के जीवन में सबका स्वभाव भिन्न होता है । कुछ लोगों के स्वभाव में स्वचालित क्रियाएँ होती है और अन्य लोग अपने स्वभाव को किसी भी स्थिति में नियंत्रित रखने में सक्षम रहते है।ऐसे में जाहिर सी बात है कि नियंत्रण के समय  मन के भीतर कुछ न कुछ तो जरूर छुपा रहता है , क्या छुपा है?  यह किसके साथ बताना चाहिए, किसके साथ नही बताना चाहिए, यह मन को असमंजस में डाल देता है । कौन इस बात का सही हल निकाल सकता है ,और सबसे आवश्यक है कि हल का सही समय क्या है ?    सब हल की उम्मीद हम अपने करीबी दोस्तों , परिवारिक सदस्यों से ही करते  हैं । मगर कुछ बातें ऐसी भी होती है: "जिनको हम न छुपा सकते है , न ही किसी से बता सकते हैं"। इस तरह हम दुविधा में फँस जाते  हैं . इसी में  'प्रेम भी एक प्रमुख विषय